गुजरते वक़्त की तकदीर, इतनी हंसी ना थी ,
की मेरे अक्श वो बिलकुल, दिल से मिटा पाए||हुए रुशवा ज़माने में, रहे बेखौफ्फ़ वो फिर भी ,
कभी जख्म अपने दिल के, ना हमको दिखा पाए ||
दर-ब-दर फिरते रहे, नजरे चुरा हमसे ,
कभी वो दूर जाने की, ना ख्वाहिश जता पाए ||
जमाने भर के अफवाहों पे , किये ऐतबार थे,
कभी एकबार भरोसे से कुछ हमसे ना कह पाए ||
No comments:
Post a Comment