हूँ मैं बेचैन बहुत , अब ये दूरी रहने दो ,
अरसे से दिल में अपने, एक बात छुपाकर रखा है ,
अबतक सपनो को मैंने, पलकों में सजाकर रखा है ,
लहरों का चंदा को छूने सा, मैं भी कुछ-कुछ हूँ व्याकुल ,
पर मुझपर इस चौखट ने, एक बांध बनाकर रखा है ,
मेरी फुलवारी में अपनी , खुशबू को तुम रहने दो ,
आओ बैठो पास मेरे , मुझे ....
जाने क्या-क्या होगा जब , तुम घर को अपने आओगी ,
माँ संग पूजा होगी फिर , तुलसी की प्यास बुझाओगी ,
और तुम्हारी खुशबू होगी, मेरे घर की रोटी में ,
तारीफ करूँगा जब दिल से मैं , तुम थोड़ा शर्माओगी ,
मैं बोलूँगा शर्म की अब तो , है जो इमारत ढ़हने दो ,
आओ बैठो पास मेरे , मुझे ....
फिर न होगी फ़िक्र जरा भी, और न कोई डर होगा ,
एक - दूजे के साथ रहेंगे , एक हमारा घर होगा ,
गुम होकर एक -दूजे में फिर , हम जो फूल खिलाएँगे ,
कोमल आभा, लिए चाँद सा सच मानो सुन्दर होगा ,
मुझको अब तो इन बातों की लहरों के संग बहने दो ,आओ बैठो पास मेरे , मुझे हाल -ए -दिल कहने दो .....
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