मैं मूर्ख ज्ञानी के संगत फिसलता कैसे ,
मैं इतनी दूर निकलता कैसे ,
मूक बधीर जग की पीड़ा से ,
मैं खुद के हित संभालता कैसे ,
मैं इतनी दूर ......
तन आवारा मेरा मन बैरागी ,
फिर सोच में हो दुर्बलता कैसे ,
मैं इतनी दूर ......
देख सबकुछ मैं चुप कायर सा ,
ये कड़वा सच निगलता कैसे ,
मैं इतनी दूर ......
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