Sunday, 31 July 2011

जाम ...

जिन्दगी  में  जो  पाया  वह  मुकाम  याद  आता  है ,
मैखाने  में  बैठु  तो  तेरा  नाम  याद  आता  है||

हलक  से  गुजरते  हर जाम  के  साथ ,
जलता  है  सीना  तो  मोहब्बत  का  अंजाम  याद  आता  है ||

जब  पलकें  भारी  और  चाल  ढीली  पड़  जाती  है ,
तब  चुपचाप  बैठ  सिर्फ  पीने  का  काम  याद  आता  है ||

होश  में  न  आना  चाहूँ दोस्तों  वरना ,
दिल  को  किसी  से  इंतकाम  याद  आता  है ||

इसलिए   नशे  में  मग्न  रहना  चाहता  हूँ ,
इसलिए  शाम  से  पहले  ही  जाम  याद  आता  है ||


एक नज्म .....

गुजरते   वक़्त   की   तकदीर,   इतनी  हंसी   ना   थी ,
की  मेरे  अक्श  वो  बिलकुल,   दिल  से   मिटा  पाए||

हुए   रुशवा  ज़माने   में,  रहे  बेखौफ्फ़   वो  फिर  भी  ,
 कभी जख्म  अपने  दिल  के,  ना हमको  दिखा  पाए ||

दर-ब-दर     फिरते   रहे,  नजरे  चुरा                हमसे ,
कभी  वो  दूर  जाने  की,  ना   ख्वाहिश      जता  पाए ||

जमाने  भर  के  अफवाहों  पे , किये   ऐतबार          थे,
कभी  एकबार  भरोसे  से  कुछ  हमसे  ना   कह  पाए ||



कुछ बूँद......

कुछ  बूँद  आस्मां  से  जो  आँखों  में  टपकी ,
उन्हें  चूमने  को  मेरी  पल्कें झपकी ,

छलक  कर  वो  गालों  पे  बहने  लगे ,
भरा  है  ये  पहले  से  कहने  लगे ,

बरे  प्यार  से  उनको  हथेली   में  समेटा ,
ज्यों  बादल  ने  उनको  था  खुद  में  लपेटा ,

बताया  उसे  फिर  की  दिल  न  भरा  है ,
बरस  झूमकर  तेरा  दीवाना  खड़ा   है |


एक पन्ना ......

हर  एक  गुजरा  दिन
जिन्दगी  की  किताब  में  जोड़ता
एक  पन्ना

जिस  पर  हर  रोज 
हम  खुद  अपनी  कलम  से 
लिखते  हैं
कुछ  नया 
जो  हर  अगले  पन्ने 
के  लिखावटों  का
आधार  बनता  है
कभी  आज  का
समर्थन  करता  है
तो  कभी  विरोध  में
उठ  खड़ा  होता  है
और  इस  पूरी 
उतार-चढ़ाव के  बाद
कभी-कभी  हमें 
मिलता  है
एक  ऐसा  पन्ना 
जहां  जब
कुछ  लिखने  को 
नहीं  बचता
तो  हम 
पिछले  सारे  पन्नो  को
नियति  का  खेल 
लिख  बैठते  हैं ....


Wednesday, 27 July 2011

रहने दो .......


हूँ मैं बेचैन  बहुत , अब  ये  दूरी  रहने  दो ,
आओ  बैठो  पास  मेरे , मुझको  हाल-ए-दिल  कहने  दो .....

अरसे  से  दिल  में अपने, एक बात छुपाकर  रखा  है ,
अबतक सपनो को मैंने, पलकों  में  सजाकर  रखा  है ,
लहरों का चंदा को छूने सा, मैं भी कुछ-कुछ हूँ व्याकुल ,
पर मुझपर इस चौखट ने, एक बांध  बनाकर  रखा  है ,
मेरी  फुलवारी  में  अपनी , खुशबू  को तुम रहने  दो ,
आओ  बैठो  पास  मेरे , मुझे  ....

जाने  क्या-क्या  होगा  जब , तुम  घर को अपने आओगी ,
माँ  संग  पूजा  होगी  फिर , तुलसी  की  प्यास  बुझाओगी ,
और   तुम्हारी   खुशबू    होगी,   मेरे   घर   की   रोटी   में ,
तारीफ  करूँगा  जब  दिल से मैं ,  तुम  थोड़ा  शर्माओगी ,
मैं  बोलूँगा   शर्म  की  अब  तो , है जो  इमारत  ढ़हने   दो ,
आओ  बैठो  पास  मेरे , मुझे  ....

फिर  न  होगी  फ़िक्र  जरा भी, और  न  कोई डर  होगा ,
एक - दूजे   के   साथ  रहेंगे , एक  हमारा   घर   होगा ,
गुम  होकर  एक -दूजे  में फिर , हम  जो  फूल  खिलाएँगे ,
कोमल  आभा, लिए चाँद सा सच  मानो  सुन्दर  होगा ,
मुझको अब तो इन बातों की लहरों के संग बहने दो  ,
आओ  बैठो  पास  मेरे  , मुझे  हाल -ए -दिल  कहने  दो .....

मेरी जिंदगी......

उम्र के उस दौर में 
जब दिमाग पर जोर डालने से 
चेहरे की  झुर्रियां 
गहरी  होने लगेंगी  
पर कुछ याद न आएगा.....

जज्बातों  से घिरकर 
कलम उठाऊंगा 
पर कांपते हांथों से 
कलम  छूट जाएगी 
और पलकों के पोरवों में 
पानी भर आएगा 
तब ....
अपने पुराने बक्से से
तेरी तस्वीर
ढूंढ़कर निकालूँगा 

जिसे देखकर मेरे 
 कँपकपांते होठों से 
बस दो शब्द निकल पाएँगे 
......मेरी जिंदगी !!!!


मैं इतनी दूर....


मैं  मूर्ख ज्ञानी  के  संगत फिसलता  कैसे ,
मैं  इतनी  दूर  निकलता  कैसे , 



मूक  बधीर  जग की  पीड़ा  से ,
मैं  खुद  के  हित  संभालता  कैसे ,
मैं  इतनी  दूर ......

तन  आवारा  मेरा  मन  बैरागी ,
फिर  सोच  में  हो  दुर्बलता  कैसे ,
मैं  इतनी  दूर ......
देख  सबकुछ  मैं  चुप  कायर  सा ,
ये  कड़वा  सच  निगलता  कैसे ,
मैं  इतनी  दूर ...... 



तो याद हमारी आएगी ...


सुबह  की  उजली  कागज़  पर  तुम ,
अपने  कोमल  हांथों  से ,
लेकर  स्याही  उन  कुछ  पल  से ,
यादों से  और  नातो  से,

छेड़ -छाड़ की  बात  कोई ,
हँसता -सा  जज्बात  कोई ,
शर्मीली  मुलाकात   कोई ,
पलकों में गुजरी रात  कोई ,
जब  भी  लिखना  चाहोगी ,
तो  याद  हमारी  आएगी,

सागर  में ज्यों  होती  हलचल ,
बागों  में  पंछी   के  कोलाहल ,
सुलझाना    उलझा    आँचल ,
बाहों  में  बीते  कुछ  वो  पल ,
जब  भी  लिखना  चाहोगी ,
तो  याद  हमारी  आएगी ....

नफरत  फिर  ना  रह   पाएगा ,
चेहरे   पर   तब   सुख   आएगा,
फिर  अक्श दिखेगा  मेरा  तुझको ,
जो  खुद  को  तेरा  कह  जाएगा ,
फिर  हंसकर  लिखना चाहोगी ,
तो  याद  हमारी  आएगी ......



देखा मैंने ..

ये  उस  दोस्त  का  हाल -ए-बयां ....जो  ....


कल  रात , फिर  किसीको  बेकरार ,देखा  मैंने 
मैखाने  में , लेकर  बैठा  ईब्दार , देखा  मैंने  ||

पी  गया  वो , अश्क  सारे , प्याले  में  डाल के ,
  समझा लौटा , मौसम -ए-बयार , देखा  मैंने ||

हँसता  रहा , फटते  अपने , जिगर  को  रोक  के ,
पहली  दफा , उसके  नजर  इसरार , देखा  मैंने ||

खींच  रहा , जिससे  लकीर ,राह -ए -गर्दिश वो ,
कल  वही , उसके  हांथ  हथियार , देखा  मैंने  ||

सच  कहा , जिसने  कहा, इश्क  निकम्मा बना दे ,
बना  काफीर ,कल  का   दीन-दार , देखा  मैंने  ||

रोक  लेते ,भला  कैसे , उसको  बोलो  "हम " यारों ,
जिसके  किसी , अपने  को बनते  कीनार , देखा  मैंने .. ..!!