फर्क पड़ता नहीं अब कोई असर होने पर ,
चाह बढती है दिलबर की कदर होने पर ||
खो गयी हो जिन्दगी से तुम मेरी बेशक मगर ,
मिल न पाओगी अब अश्क-ए-जिगर होने पर ||
सच है के अँधेरा मेरी रूह बन चुकी लेकिन ,
डर नहीं लगता जरा भी, अब तो सहर होने पर ||
ग़मगीन नज्मो से, मिलूँ फिर जरुरी नहीं ,
खुश हूँ इश्क के एहसास-ए-नजर होने पर ||
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