Friday, 12 August 2011

पाया खुद  को खो  कर , रह  गया  तेरा होकर ,
खोया  जुल्फों में तेरे,  कहीं  खा  ना  लूँ  ठोकर,

थाम लो  जो हाँथ  मेरा,  गुम हो जाए  अँधेरा ,
संग  है  तू तो  उजाला, किसलिए  चाहूँ  सवेरा ,

सुन  के बातें  मेरी  जो, तेरे लब मुस्कुरा जाए ,
डरता हूँ कहीं देख तुझे , ये कदम ना डगमगाए ,

और  हँसते  हुए  पलकों में कहीं, सावन जो आया ,
पूछेगा चाँद  मैंने  क्या  किया,  क्यूँ  मुझको  भिगोया |

साथी  तेरी  शादी  में , बोल  आऊंगा  मैं  कैसे ,
तुझको   विदा   होते , देख   पाउँगा   मैं  कैसे ,

बातें वो बचपन की ,याद आएंगी अब  मुझको ,
जिसकी  हंसी  भाए , कैसे  रोते   देखूं   उसको ,
खेल  गुडिया  की शादी का , खेल पाउँगा मैं कैसे,
तुझको विदा होते.....

चाहूँ  तो   मैं  भी  ये , तुझे   डोली  में   देखूं  मैं,
धान-चावल विदाई  की, तेरी झोली  में देखूं मैं,
पर   आंसू   भरे   नैना  , झेल   पाउँगा  मैं  कैसे,

तुझको विदा होते.....

जब  रोएगी  अम्मा  की, आंचल से लिपटकर  तू ,
 और  बाबुल  के  कुर्ते  को , पकड़ेगी  झपटकर  तू,
  यूँ  तड़पते  हुए   तुझको, समझाऊंगा   मैं  कैसे,

तुझको विदा होते..... 


Thursday, 11 August 2011

होने पर......

फर्क  पड़ता  नहीं अब  कोई  असर  होने  पर ,
चाह  बढती  है  दिलबर  की  कदर  होने  पर ||

खो गयी हो जिन्दगी से तुम मेरी बेशक मगर ,
मिल न पाओगी अब अश्क-ए-जिगर होने पर ||

सच है  के  अँधेरा  मेरी  रूह  बन  चुकी  लेकिन ,
डर नहीं लगता जरा भी, अब तो सहर होने पर ||

ग़मगीन  नज्मो  से,  मिलूँ  फिर  जरुरी  नहीं ,
खुश  हूँ  इश्क  के  एहसास-ए-नजर  होने  पर ||