अपने दिल की कह तो गए,
मुझसे भी तो पुछा होता
कैसा लगता है मुझको,
जब तुमसे दूरी होती है,
रोते हैं क्या जज़्बात मेरे,
जैसे तेरी पलकें रोती हैं,
होता है क्या दर्द मुझे भी,
जब कभी ठोकर लगता है,
छोर दूँ इस निर्दयी जग को,
क्या अरमाँ ऐसा भी जगता है,
मैं भी क्या अपने मुजरिम को,
कभी कोई सजा सुनाता हूँ,
अगर नहीं तो फिर कैसे,
सुकूं से मैं रह पाता हूँ,
कैसा लगता तुम्हे ज़रा बताना,
जो मैं भी ऐसे रूठा होता,
अपने दिल की कह तो गए,
मुझसे भी तो........
मुझसे भी तो पुछा होता
कैसा लगता है मुझको,
जब तुमसे दूरी होती है,
रोते हैं क्या जज़्बात मेरे,
जैसे तेरी पलकें रोती हैं,
होता है क्या दर्द मुझे भी,
जब कभी ठोकर लगता है,
छोर दूँ इस निर्दयी जग को,
क्या अरमाँ ऐसा भी जगता है,
मैं भी क्या अपने मुजरिम को,
कभी कोई सजा सुनाता हूँ,
अगर नहीं तो फिर कैसे,
सुकूं से मैं रह पाता हूँ,
कैसा लगता तुम्हे ज़रा बताना,
जो मैं भी ऐसे रूठा होता,
अपने दिल की कह तो गए,
मुझसे भी तो........